From the Diary of Anurag .....
मुझे अपनी पढाई ख़त्म किये हुए काफी साल हो गए और कॉपी-किताबों से नाता भी ख़त्म हो गया, रह गयी तो बस अपने काम से सम्बंधित लिखा-पढ़ी. एक दिन अखबार में एक शब्द पढने को मिला ‘असहिष्णुता’, विश्वास मानिये दिमाग की बत्ती बिलकुल गुल हो गयी. समझ में ही नहीं आया की इसका मतलब क्या होता है. शब्द काफी भारी-भरकम था और जिस खबर के साथ सम्बंधित था उसको भी फर्स्ट पेज में जगह मिली हुई थी, इससे इतना तो समझ में आ गया की काफी महत्वपूर्ण शब्द है. हालाँकि इसका इस्तेमाल मैंने अपने 12 साल के पत्रकारिता जीवन में कभी नहीं किया था और शायद स्कूल कॉलेज में भी नहीं किया होगा.
जब इसका इस्तेमाल रोज़ अख़बारों में होने लगा तो ऐसा लगा की अब इसका अर्थ भी ढूंढना चाहिए. बस बैठ गए इन्टरनेट पर और आखिर में जवाब मिल भी गया. ‘असहिष्णुता’ का मतलब होता है ‘असहनीयता’ अगर आम बोलचाल की भाषा में कहें तो सहनशक्ति का कम हो जाना. उसके बाद पिछले कुछ दिनों से चल रही खबरों को इससे जोड़कर देखा तो पता चला की कुछ लोग अपने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस कर रहे है क्योंकि उनके अनुसार देश में असहिष्णुता मतलब असहनीयता बढ़ गयी है. इसका सीधा सा मतलब यह हुआ की जो देश में चल रहा है वो अब सहन करने से बाहर है इसलिए कुछ लोग अपने पुरस्कार लौटा रहे है.
इतनी बात समझ में आने के बाद मन के अंदर विश्लेषण शुरू हो गया. पहले एक भारतीय होने के नाते उसके बाद एक पत्रकार होने के नाते इस मुद्दे का विश्लेषण शुरू किया. समझ में यह आया की अगर पत्रकार होने के नाते करेंगे तो मात्र एक ख़बरीलाल बनकर रह जायेंगे इसलिए इसका विश्लेषण करना चाहिए देश का नागरिक होने के नाते, एक भारतीय होने के नाते. सबसे पहला सवाल यह आया की भाई ऐसा देश में क्या हो गया है जो आज तक नहीं हुआ था और अब हुआ है और वो असहनीय है?
सबसे पहला कारण ध्यान में आया- दंगे. लेकिन फिर सोचा की दंगे तो 1984 में बहुत हुए थे, उसके बाद 1992 में हुए फिर 2002 में गुजरात में हुए लेकिन तब तो किसी ने राष्ट्रीय सम्मान (मै यहाँ पुरस्कार नहीं सम्मान बोलूँगा) वापस नहीं किया था और उन वर्षों जैसे दंगे तो भगवान् की दया से अभी हुए भी नहीं तो फिर दंगे कारण नहीं हो सकते. फिर दूसरा कारण सोचा की शायद किसी धर्म या जाति विशेष के साथ देश भर में उत्पीड़न हो रहा होगा उनको देश से निकाला जा रहा होगा, लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ. कोई और कारण तो समझ में नहीं आ रहा था.
फिर यह सोचा की बड़े लोगों की बड़ी बातें, हो सकता है कोई कारण रहा हो जिसने कुछ लोगों को जो बुद्धजीवी वर्ग से आते है उनको परेशान कर दिया हो. लेकिन हमें तो समस्या नहीं उसका समाधान खोजना चाहिए. कुछ सवाल मन में उठते चले गए जिनके उत्तर मै सम्मान लौटाने वालों से जानना चाहता था लेकिन फिलहाल उन तक नहीं पहुँच पाया तो सोचा चलो यहीं पर पूछ लेता हूँ और आप सबसे शेयर भी कर लेता हूँ.
पहला सवाल, राष्ट्रीय पुरस्कार भी उसी तरह सम्मानीय है जैसे राष्ट्रीय गान, जैसे राष्ट्रीय चिन्ह, तो क्या राष्ट्रीय सम्मान लौटना राष्ट्र का अपमान नहीं है? दूसरा सवाल, ऐसा देश में क्या हुआ है जो आज़ादी के बाद से अभी तक नहीं हुआ और पहली बार हो रहा है? तीसरा सवाल, हमारा देश हमारा घर है, अगर हमारे घर के अंदर हमें कोई बात पसंद नहीं आती तो क्या हम घरवालों के दिए गए उपहार, कपड़े, आदि लौटना शुरू कर देते है? नहीं, हम ऐसा कुछ नहीं करते तो फिर सम्मान लौटाने जैसा कदम क्यों?
असल बात यह है की हमारे यहाँ राजनीति का रूप बदल गया है और कुछ लोग दूसरों की बातों में आकर राजनीति का शिकार हो रहे है, दूसरों के हाथ का खिलौना बन रहे है. एक नागरिक के लिए देश से बड़ा कुछ नहीं होना चाहिए. जिस तरह हम अपने घर को अपने परिवार को एकजुट रखते है, सँभालते है उसी तरह से हमें अपने देश को एकजुट रखना होगा उसको संभालना होगा और उसकी एकता-अखंडता को बनाये रखना होगा. इसलिए दूसरों की हाथ की कठपुतली न बनें और देश का सम्मान करें. राष्ट्रीय पुरस्कार किसी सरकार ने नहीं दिया है, देश ने दिया है और देश ही सर्वोपरि है.
- अनुराग
Anurag Agrawal is a well known TV Journalist, Editor, Talk Show host and owner of Broadcasting & media production company 'Network 24X7'.
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